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झूठे दर्पण झूठे सृंगार सभी फिर भी तुम हम न सुलझने

झूठे दर्पण झूठे सृंगार सभी
फिर भी तुम हम न सुलझने को तैयार कभी
दिन ढल जाते,,राते कालीओर गहरी
उतरना ही होता है मेहंदी को तो
रची बसी हाथों में कितनी भी गहरी। #उतारना ही होता मेहंदी को तो
झूठे दर्पण झूठे सृंगार सभी
फिर भी तुम हम न सुलझने को तैयार कभी
दिन ढल जाते,,राते कालीओर गहरी
उतरना ही होता है मेहंदी को तो
रची बसी हाथों में कितनी भी गहरी। #उतारना ही होता मेहंदी को तो
prairathi5771

P Rai Rathi

New Creator