झूठे दर्पण झूठे सृंगार सभी फिर भी तुम हम न सुलझने को तैयार कभी दिन ढल जाते,,राते कालीओर गहरी उतरना ही होता है मेहंदी को तो रची बसी हाथों में कितनी भी गहरी। #उतारना ही होता मेहंदी को तो