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तुम क्या रुठे इस दुनिया के सब संकट साकार हो गए| ऐस

तुम क्या रुठे इस दुनिया के सब संकट साकार हो गए|
ऐसी हवा चली नगरी के दीपक भी अंगार हो गए|
जिस ने मुझको ठुकराया है मैं तो उसका भी आभारी
जिस ने गले लगाया वह है मेरे प्राणों का अधिकारी
जाने क्या अपराध हो गया अनुमानों को खबर नहीं है|
तूफानों से रिश्वत लेकर मांझी भी मझधार हो गऍ
पवन उड़ा सकती है मुझको पानी नहीं डूबा पाएगा|
मैं तृण हूं मेरा हल्का पन मुझको लेकर तर जाएगा|
मैंने किए समर्पण अब तक सहयोगो की भीख मांगी|
फिर क्यों बगिया की चंदन पर विषधर पहरेदार हो गऍ|
मैंने जिन की पीड़ाओ पर नित आंसू के अर्ध्य चढ़ाऐ|
आश्वासन देकर कि मुझको वह मेरे कुछ काम ना आए|
बनकर सुमन हाथ पतझड़ के सौ सौ बार लुटा उपवन में
उसी सुमन की आज्ञा के अब पालन भी इंकार हो गए|
जग सूरज का ताज दिखाकर मुझसे आंखें मांग रहा है|
चांद गगन का राज दिखाकर मुझसे पाखे मांग रहा है|
खुशियों पर अधिकार नहीं तो फिर कैसे उपहार लुटाउ
जीवन में मधुमास सभी जब मरघट के त्यौहार हो गए|
तुम क्या रुठे इस दुनिया के सब संकट साकार हो गए|
ऐसी हवा चली नगरी के दीपक भी अंगार हो गए|
जिस ने मुझको ठुकराया है मैं तो उसका भी आभारी
जिस ने गले लगाया वह है मेरे प्राणों का अधिकारी
जाने क्या अपराध हो गया अनुमानों को खबर नहीं है|
तूफानों से रिश्वत लेकर मांझी भी मझधार हो गऍ
पवन उड़ा सकती है मुझको पानी नहीं डूबा पाएगा|
मैं तृण हूं मेरा हल्का पन मुझको लेकर तर जाएगा|
मैंने किए समर्पण अब तक सहयोगो की भीख मांगी|
फिर क्यों बगिया की चंदन पर विषधर पहरेदार हो गऍ|
मैंने जिन की पीड़ाओ पर नित आंसू के अर्ध्य चढ़ाऐ|
आश्वासन देकर कि मुझको वह मेरे कुछ काम ना आए|
बनकर सुमन हाथ पतझड़ के सौ सौ बार लुटा उपवन में
उसी सुमन की आज्ञा के अब पालन भी इंकार हो गए|
जग सूरज का ताज दिखाकर मुझसे आंखें मांग रहा है|
चांद गगन का राज दिखाकर मुझसे पाखे मांग रहा है|
खुशियों पर अधिकार नहीं तो फिर कैसे उपहार लुटाउ
जीवन में मधुमास सभी जब मरघट के त्यौहार हो गए|
anandpanday3061

Anand Panday

New Creator