नेंत्र पढ़कर हृदय को जाना शब्दों को पढ़कर भाव पहचाना रास्ता दिख़ाया जब भी तुमने अंधेरा मिला फ़िर रौशनी जगायी कौन हूं मैं कोई समझ ना पाया शब्दों को लेकर कितना रुलाया ज्योति देकर दिये को छीना जलाकर हृदय फ़िर आँसुओं से पोंछा कष्ट नहीं है, दुख़ भी नहीं है फ़िर भी कुछ है जो रिक्त नहीं है स्वयं मैंने भी ना जाना कि द्वार कहाँ था और द्वीप कहाँ है किरणें देती हिम्मत हमको जगाती विश्वास पावन मन को करती रहती कोई नहीं है,जो कुछ है वो ख़ुद ही खु़द है अकेला नहीं कोई इस जहाँ में है बस अकेला समझकर ख़ुद से है अकेला। #yqdidi #yqaestheticthoughts #yqstitchers #yqbaba #poetry