भूलता नहीं वो मंजर मुझे आज तलक देखा तुझे ,पास आये बिना दूर जाते बिना पलट फ़फ़क पड़ा था उस दिन दिल मेरा ज़ोरों से सूखे नहीं हैं आँसू दिल के,उस दिन से अब तलक ख़ामोशी को उस दिन गले जो लगाया मैंने नहीं मिली हूँ ज़िंदगी से,उस दिन से अब तलक गुनहगार ठहराती नहीं तुझे मैं आज तलक मोहब्बत के गुनाह की सज़ा काट रही अब तलक चैलेंज by नवरचना साहित्य पब्लिकेशन्स 13 फरवरी 👉अपनी रचना मौलिक होनी चाहिये । 👉समय रात मे 10 बजे तक। 👉Collab बनाकर comment मे done लिखे। 👉एक उम्मीदवार को नवरचना द्वारा विजेता घोषित किया जायेगा। निर्णय भी नवरचना ही करेगा। 👉 जो कोई भी रचना book के रुप मे public करना चाहता है वह कमेंट रचना लिखे हम जब संग्रह हो जायेगा तब book का रुप दे देंगे।( आपकी इच्छा हो तो)