लाख टके की बात।। लाख टके की बात कहुँ मैं, सुनना है तो सुन लो। ज्ञान है बिखरा कोने कोने, जितना चाहो चुन लो। ना धन-दौलत, ना गुरु किताब, बस आंख खुली तुम रखना। जीवन सब सिखला देती है, बस ध्यान से पग तुम रखना। हर पल सीख लिए आता है, तुम बस उसे बटोरो। आलस का बस त्याग करो तुम, सोये रहना छोड़ो। चार पहर, कब रुकता सूरज, सीख कई दे जाता। है रौशन ले वो ज्ञान पिटारा, भीख कई दे जाता। पका घड़ा फिर रूप न बदले, निज को कोमल रखना। छींट पड़े और तुम जग जाओ, गंगा का वो जल रखना। धूमिल कहां कब नाम है उसका, ज्ञान-जोत जो लिए चला। अमृत बहती वाणी से उसके, जल-स्रोत जो पिये चला। तुम कबीर हो, तुम रहीम हो, पोथी से ज्ञान कहां आता है। विद्या लक्ष्मी की दास नहीं, धन से मान कहां आता है। पेड़ में फल तो तब ही आता है, जो जड़ में उर्वर पानी पड़े। किश्तों में ज्ञान की पूजा कैसी, इससे तो बस हानी बढ़े। पौरुष पौरुष कह थकते नहीं, बिन ब्यद्धि ये बेकार है। जैसे नाक पे मक्खी बैठी हो, और बन्दर लिए तलवार है। अनुभव की महत्ता तो जानो, सोना जलकर ही तो निखरता है। कोई मोम रहा, तो तुच्छ वो नहीं, अंधेरा हरने को ही तो पिघलता है। मुर्गा बांग रहा देता, खोल आंख तुम सोये थे। चलो उठो कुछ करना है, जो दिवा-स्वप्न में खोए थे। ©रजनीश "स्वछंद" लाख टके की बात।। लाख टके की बात कहुँ मैं, सुनना है तो सुन लो। ज्ञान है बिखरा कोने कोने, जितना चाहो चुन लो। ना धन-दौलत, ना गुरु किताब,