कुछ तो ख्वाहिश रही होगी इन बूंदों की भी, वरना यूँ बेतहाशा जमीं को कौन चूमता है, वो भी आसमाँ से टूटकर ज़ब गिरता है! ©V. Aaraadhyaa #बून्द की ख्वाहिश