तुम थी मई की दुपहरी जब देखा, तुमने पहली बार था मुझको, मैं पढ़ी लिखी समझू खुदको, ग़ुरूर में अपने ना पहचान सकी तुमको, माँ मुझे वो पसन्द नहीं, पर माँ बाबा समझ गए थे तुमको, क्रोधी स्वभाव था सदा मेरा, तुम ठंडे शर्बत सा पीते मुझको। पसंद तुम्हारी पहली नज़र की थी मैं समझ गई थी, फिर क्यूँ छुप छुप कर देख रहे तुम मुझको, समझना ज़रा मुश्किल था मेरी कम अकल को, कि लिहाज सबका रखना आता था तुमको, क्रोधी था स्वभाव सदा मेरा, तुम ठण्डे शर्बत सा पीते मुझको। जून की तपती गर्मी में, ब्याहने आये तुम मुझको, गर्म दिमाग की गर्म मैं, समझ ना पाई कभी तुमको, था प्रेम तेरा अनकहा, गुपचुप सा, जान सकी ना मैं इतना भी तुमको, मुझको समझने में वक़्त ज़रा न लगना तुम्हारा, ये ही था वरदान मुझको, क्रोधी था स्वभाव सदा मेरा, तुम ठण्डे शर्बत सा पीते मुझको। मैं कहती हमेशा "I hate you",, तुम सुनते उसको "I love you" मुस्कुरा कर चले जाना वो तुम्हारा, और चिढ़ाता था मुझको, पर वापस आने पर वो लाड़ तुम्हारा, भाता बहुत था मुझको, तू जैसी भी है, मेरी है, कहना तेरा बहुत सुहाता था मुझको, क्रोधी था स्वभाव सदा मेरा, तुम ठण्डे शर्बत सा पीते मुझको। कौन कहता है त्याग सिर्फ औरत करती हैं, देखा है आंखों से त्यागते मैंने तुमको, नींद, भूख, आमदनी और सुकून, दौड़ते मशीन बन तुमको। देखा मैंने सबका ध्यान रखते तुमको, सबका हिसाब रखते, खुद पर एक पल, एक पैसा, ना खुद पर खर्च करते तुमको, हाँ देखा मैंने मुझको छाया देने में, कड़कती धूप में दौड़ते तुमको, क्रोधी था स्वभाव सदा मेरा, तुम ठंडे शर्बत सा पीते मुझको।