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ठहरिए... कभी अपनों के लिए... हां, जरुर से अपने आप

ठहरिए... कभी अपनों के लिए...
हां, जरुर से अपने आप के लिए।
....
मुखौटे में दोहरे-तिहरे चेहरे
जाने वे कैसे-कैसे जी लेते हैं!! 
....
परख बढ़े, परिचय बढ़े परिवार,
सबको ले जो चलें तो हो सम्मान।
....
सहज, सुलभ, सुन्दर, सरल समभाव 
रहे वहीं खुश, रखें सबको प्रेम भाव। 🍀🍀🍀शुभ प्रभात 🍀🍀🍀

जैसे नदी की लम्बाई बढ़ती,
वेग शांत सा होता जाता।

परिपक्व हो जीवन में भ्राता,
मानव भी रोज सीखता जाता।
ठहरिए... कभी अपनों के लिए...
हां, जरुर से अपने आप के लिए।
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मुखौटे में दोहरे-तिहरे चेहरे
जाने वे कैसे-कैसे जी लेते हैं!! 
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परख बढ़े, परिचय बढ़े परिवार,
सबको ले जो चलें तो हो सम्मान।
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सहज, सुलभ, सुन्दर, सरल समभाव 
रहे वहीं खुश, रखें सबको प्रेम भाव। 🍀🍀🍀शुभ प्रभात 🍀🍀🍀

जैसे नदी की लम्बाई बढ़ती,
वेग शांत सा होता जाता।

परिपक्व हो जीवन में भ्राता,
मानव भी रोज सीखता जाता।
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