अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर। खोल कर गेसुयें,मेरे दिल पर कहर ढाया न कर।। तेरे मुस्कुराने से शक़ हुआ है जमाने को। मुझे देख कर,तू यूँ मुस्कुराया न कर।। ये तेरी झुकी नज़रें ही तो क़त्ल करती हैं। तू मेरी बातों पे शर्मा कर यूँ नजरें झुकाया न कर।। लाख पहरे हैं, मेरी दिल-ए-मोहब्बत पर ज़माने की। लेकिन तू यूँ बेवक़्त मुझसे मिलने आया न कर।। चाँद निकलने का, भरम हुआ था आशीष पूरे शहर को। तू यूँ शाम ढले छत पर आया-जाया न कर।। अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर। खोल कर गेसुयें,मेरे दिल पर कहर ढाया न कर।। तेरे मुस्कुराने से शक़ हुआ है जमाने को। मुझे देख कर,तू यूँ मुस्कुराया न कर।। ये तेरी झुकी नज़रें ही तो क़त्ल करती हैं। तू मेरी बातों पे शर्मा कर यूँ नजरें झुकाया न कर।।