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अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर। खोल कर गेसुये

अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर।
खोल कर गेसुयें,मेरे दिल पर कहर ढाया न कर।।

तेरे मुस्कुराने से शक़ हुआ है जमाने को।
मुझे देख कर,तू यूँ मुस्कुराया न कर।।

ये तेरी झुकी नज़रें ही तो क़त्ल करती हैं।
तू मेरी बातों पे शर्मा कर यूँ नजरें झुकाया न कर।।

लाख पहरे हैं,
मेरी दिल-ए-मोहब्बत पर ज़माने की।
लेकिन तू यूँ बेवक़्त मुझसे मिलने आया न कर।।

चाँद निकलने का,
भरम हुआ था आशीष पूरे शहर को।
तू यूँ  शाम ढले छत पर आया-जाया न कर।। अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर।
खोल कर गेसुयें,मेरे दिल पर कहर ढाया न कर।।

तेरे मुस्कुराने से शक़ हुआ है जमाने को।
मुझे देख कर,तू यूँ मुस्कुराया न कर।।

ये तेरी झुकी नज़रें ही तो क़त्ल करती हैं।
तू मेरी बातों पे शर्मा कर यूँ नजरें झुकाया न कर।।
अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर।
खोल कर गेसुयें,मेरे दिल पर कहर ढाया न कर।।

तेरे मुस्कुराने से शक़ हुआ है जमाने को।
मुझे देख कर,तू यूँ मुस्कुराया न कर।।

ये तेरी झुकी नज़रें ही तो क़त्ल करती हैं।
तू मेरी बातों पे शर्मा कर यूँ नजरें झुकाया न कर।।

लाख पहरे हैं,
मेरी दिल-ए-मोहब्बत पर ज़माने की।
लेकिन तू यूँ बेवक़्त मुझसे मिलने आया न कर।।

चाँद निकलने का,
भरम हुआ था आशीष पूरे शहर को।
तू यूँ  शाम ढले छत पर आया-जाया न कर।। अपने लबों पर कभी मेरा नाम लाया न कर।
खोल कर गेसुयें,मेरे दिल पर कहर ढाया न कर।।

तेरे मुस्कुराने से शक़ हुआ है जमाने को।
मुझे देख कर,तू यूँ मुस्कुराया न कर।।

ये तेरी झुकी नज़रें ही तो क़त्ल करती हैं।
तू मेरी बातों पे शर्मा कर यूँ नजरें झुकाया न कर।।