जमाने के नजर में शायरी नाकामी का सबब है ज़माने को क्या खबर अल्फाजो में ही रब है कुसूर हमारा जो नज़्म को नमाज़ समझ बैठे है बेपनाह उंस को इबादत का दर्जा दे बैठे है।। अब तो कफ़न को पगड़ी बना ली है मौला से रिश्ता तगड़ी बना ली है रहे ना रहे हम तू देख लेना परवरदिगार ज़माना कभी तो हमारे ज़िद से मानेगा हार।। Dead Poets Society! Long live poetry #shayar #nazm #zakhm