टूटती आशाएं कौंधी है चिंता की रेखाएं, हे मानवता के दुश्मन पहले से हलसी दीवारों को क्यों दरकाए! जान जानकर जीवन को है झोंक रहा, गली गली चौराहे पर कुत्तों सा ही भौक रहा! कुछ तो ख़याल कर कर्तव्यों का, ये समय नही है कोरे वक्तव्यों का! मिल जुलकर हम दुश्मन से लड़ जाएगें, जो दुनिया से न हो पाया वो कर जाएगें! ✍️कुमार रमेश 'राही' #LastDay #टूटती #आशाएं #मानवता #दुश्मन #दीवारों #दुनिया #kumarrameshrahi