ज़िन्दगी सबकी यहाँ पर कबड्डी का खेल जैसे, विध्न बाधा पटरियाँ हैं दौड़ती है रेल जैसे, बाँधकर रखती नदी का कोर दुर्गम रास्तों तक, मिल न पाती सिंधु तक भी किनारों के मेल जैसे, दो तटों के बीच नौका बह रही उम्मीद लेकर, हो गए भव पार समझो पास वर्ना फेल जैसे, है सुखद संयोग मिट सकता तिमिर अज्ञानता का, जल रहा तन का दीया है प्राण उसमें तेल जैसे, आर या उस पार 'गुंजन' ज्ञान का अनुदान पाकर, रह गए वंचित समझ लो मिल गया हो जेल जैसे, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #पास वर्ना फेल जैसे#