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सोते   या जागते   हों, मदीना दिखाई   दे। यानी   ख

सोते   या जागते   हों, मदीना दिखाई   दे।

यानी   ख़ुदा का   हुस्न हमेशा  दिखाई दे।


अहमद  अहद में  मीम का, पर्दा दिखाई दे।

इस   पर्द-ए  सिफ़ात में, मौला  दिखाई दे।


मौला  मिरी नज़र  को वो, बीनाई कर अता, 

*हर शय  में मुझको गुम्बदे-ख़ज़्रा दिखाई दे।*


कुन्जी-ए  कुन इशारा   अगर चाँद को करें, 

तो  वह फलक  पे क्यों न दुपारा दिखाई दे।


सरकारे-दो   जहाँ की, मुहब्बत  के फ़ैज़ से, 

इन्सान  में ख़ुदा   का, ख़ुलासा दिखाई  दे।


मक़सद ख़ुदा-ओ ख़ल्क़ है,जब ज़ाते-मुस्तफ़ा, 

तो  क्यों   न कायनात  में, यकता दिखाई दे।


राज़े-ख़ुदा-ओ  ख़ल्क़ फिर आ जाये ज़िह्न में, 

गर   क़तरे   के वजूद  में दरिया दिखाई दे।


का'बे   का का'बा   देख, बढ़ें और लज़्ज़तें, 

का'बे   में काश   साहिबे-का'बा  दिखाई दे।


मुरशिद के दस्ते-हक़ से *बहार* आएगी अगर, 

दस्ते-ख़ुदा   से चेहरा, ख़ुदा   का दिखाई दे।


*बहार चिश्ती नियामतपुरी*


🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़  150 🌹🌹🌹

221-2121-1221-212

*बह्रे-मज़ारिअ मुसमन अख़रब

मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

🌹🌹22/05/19 से 24/05/19🌹🌹
सोते   या जागते   हों, मदीना दिखाई   दे।

यानी   ख़ुदा का   हुस्न हमेशा  दिखाई दे।


अहमद  अहद में  मीम का, पर्दा दिखाई दे।

इस   पर्द-ए  सिफ़ात में, मौला  दिखाई दे।


मौला  मिरी नज़र  को वो, बीनाई कर अता, 

*हर शय  में मुझको गुम्बदे-ख़ज़्रा दिखाई दे।*


कुन्जी-ए  कुन इशारा   अगर चाँद को करें, 

तो  वह फलक  पे क्यों न दुपारा दिखाई दे।


सरकारे-दो   जहाँ की, मुहब्बत  के फ़ैज़ से, 

इन्सान  में ख़ुदा   का, ख़ुलासा दिखाई  दे।


मक़सद ख़ुदा-ओ ख़ल्क़ है,जब ज़ाते-मुस्तफ़ा, 

तो  क्यों   न कायनात  में, यकता दिखाई दे।


राज़े-ख़ुदा-ओ  ख़ल्क़ फिर आ जाये ज़िह्न में, 

गर   क़तरे   के वजूद  में दरिया दिखाई दे।


का'बे   का का'बा   देख, बढ़ें और लज़्ज़तें, 

का'बे   में काश   साहिबे-का'बा  दिखाई दे।


मुरशिद के दस्ते-हक़ से *बहार* आएगी अगर, 

दस्ते-ख़ुदा   से चेहरा, ख़ुदा   का दिखाई दे।


*बहार चिश्ती नियामतपुरी*


🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़  150 🌹🌹🌹

221-2121-1221-212

*बह्रे-मज़ारिअ मुसमन अख़रब

मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

🌹🌹22/05/19 से 24/05/19🌹🌹