प्रिया मन की आँखोँ मेँ अक्ष तुम्हारा मुस्काता है । मेरे अधरोँ पर नाम तेरा ही क्यों आता है । तू चंचल तेरे चितवन प्यारे, अल्हड़,शोख, मोहक,कजरारे । क्योँ जाने सपनोँ मेँ मेरे, अक्ष तुम्हारा ही क्योँ आता है । यौवन की मधुमास छबीली , तू महफिल की,शाम नशीली । तेरा सुन्दर रूप सलौना , मेरे मन को क्योँ भाता है । काले-काले केश घनेरे , चाँद को ज्योँ हो बादल घेरे । ऐसी मोहक छटा अनूठी , मेरे मन को सरसाता है । ले0 यशपाल सिँह "बादल" ©Yashpal singh gusain badal' प्रिया मन की आँखोँ मेँ अक्ष तुम्हारा मुस्काता है । मेरे अधरोँ पर नाम तेरा ही क्यों आता है । तू चंचल तेरे चितवन प्यारे,