यादों के शहर से दोस्त मैं निकल गया राह में मिली कश्ती से दिल डर गया गुले-गुलज़ार होते रहता है "पासवान " मैं मुहब्बत की कश्मकश से निकल गया वो कभी राह में मिली तो नज़र चुरा लेंगे सोचूंगा अजनबी मेरे बगल से गुजर गया #क़लम_ए_ख़ास