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"बस तभी" एक बेटी जो परी होती है अपने पिता की, उस

"बस तभी"

एक बेटी जो परी होती है अपने पिता की,
उस घर की चहचहाती चिड़िया होती है,
पिता की पलकों पर बैठी माँ की दुलारी होती है,
बस तभी वो दुत्कारी जाती है,
तानों पर कसी जाती है,
हर वक़्त अपमानित की जाती है,
हाँ बस तभी वो रोती रहती है अन्दर ही अन्दर,
एहसानों से तौला जाता है उसे,
पैसे का रौब दिखाया जाता है,
बस तभी उसका चहचहाना बन्द हो जाता है,
जब ना जाने कितनी ही बार उसे,
सूली पर टाँग दिया जाता है,
सिमटी रहती है किसी कोने में,
उस कोने में ही,
खुद को ढूँढती रहती है,
जो कभी वो हुआ करती थी,
बस तभी वो तलाशती रहती है,
अपने वजूद को,
जो ज़िन्दा रहती थी सबके अन्दर,
बस तभी वो मर चुकी होती है,
लोगों के अन्दर,
हाँ बस तभी जब,
उसका पिता मर जाता है लोगों के लिए!!!!
©वन्दना "बस तभी"
"बस तभी"

एक बेटी जो परी होती है अपने पिता की,
उस घर की चहचहाती चिड़िया होती है,
पिता की पलकों पर बैठी माँ की दुलारी होती है,
बस तभी वो दुत्कारी जाती है,
तानों पर कसी जाती है,
हर वक़्त अपमानित की जाती है,
हाँ बस तभी वो रोती रहती है अन्दर ही अन्दर,
एहसानों से तौला जाता है उसे,
पैसे का रौब दिखाया जाता है,
बस तभी उसका चहचहाना बन्द हो जाता है,
जब ना जाने कितनी ही बार उसे,
सूली पर टाँग दिया जाता है,
सिमटी रहती है किसी कोने में,
उस कोने में ही,
खुद को ढूँढती रहती है,
जो कभी वो हुआ करती थी,
बस तभी वो तलाशती रहती है,
अपने वजूद को,
जो ज़िन्दा रहती थी सबके अन्दर,
बस तभी वो मर चुकी होती है,
लोगों के अन्दर,
हाँ बस तभी जब,
उसका पिता मर जाता है लोगों के लिए!!!!
©वन्दना "बस तभी"