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यादों के मेला, ख्वाबों का सफ़र, मन तितलियों का दी

यादों के मेला, ख्वाबों का सफ़र, 
मन तितलियों का दीवाना, 
फिर भी न मिला कोई हमसफर।। 

खोकर भी हम खो जातें हैं, उनकी 
जुल्फ़ -ए- मोहब्बत में, 
ये कैसा कर्ज़ दिया, उनकी एक दफ़ा 
नज़रों ने, 
मुझे मुझसे ही छीन लिया, उनकी 
एक दफ़ा नज़रों ने।

©कवि विजय सर जी #titliyan  'दर्द भरी शायरी'
यादों के मेला, ख्वाबों का सफ़र, 
मन तितलियों का दीवाना, 
फिर भी न मिला कोई हमसफर।। 

खोकर भी हम खो जातें हैं, उनकी 
जुल्फ़ -ए- मोहब्बत में, 
ये कैसा कर्ज़ दिया, उनकी एक दफ़ा 
नज़रों ने, 
मुझे मुझसे ही छीन लिया, उनकी 
एक दफ़ा नज़रों ने।

©कवि विजय सर जी #titliyan  'दर्द भरी शायरी'