..............घुसपैठिया............ सबका अपना बन सबको छलता है वो. दिल के किसी कोने में बैठ,दिलों को भेद देता है वो बात का बतंगड़ बना,नुमाइशें करता है ये वो शक्स है जो घर-घर की टोह लेता है सबके सामने होकर भी अदृश्य रहता है सबका चहेता बन सबके दिलों में बसता है पर उसके दिल में कहाँ कौन बसताहै