पिता! तुझे छूता नहीं रस्म-ओ-रिवाज का सैलाब झूठ-मूठ का घेरा ज़माने का निज़ाम रेंगता ख़ालीपन इसकी जगह तुझसे सीखा है मैंने अपनी शर्त पर जीने की कोशिश करना घनी करना अपनी मुस्कराहटें पिता! मैं हूँ तेरे सजदे में # पिता! तेरे सजदे में हूँ