लकीरें खींच देने से सरहदें नहीं बना करती दिलों में नफरतों होने से दीवारें नहीं बना करती मुल्क बन भी गया तो क्या हुआ जज़्बात में प्यार की बात करने से महलें नहीं बना करती ये बूढ़ी आंखें रस्ता कब से देख रही है तुम्हारी ऐसी कमाई करने से प्यारे रिश्ते नहीं बना करती दिन रात हाय तौबा करने से क्या मिलेगा तुम्हें रोज ऐसा करने से घर की मिनारें नहीं बना करती देखा नहीं रुश्वाई तुमने कभी तंग गलियों में महफ़िल में ऐसे रोने से किस्मते नहीं बना करती तन्हाई का आलम हमसे अब मत पूछो आरिफ अकेले रोने से बिगड़े हुए रिश्ते नहीं बना करती लकीरें खींच देने से सरहदें नहीं बना करती दिलों में नफरतों होने से दीवारें नहीं बना करती मुल्क बन भी गया तो क्या हुआ जज़्बात में प्यार की बात करने से महलें नहीं बना करती ये बूढ़ी आंखें रस्ता कब से देख रही है तुम्हारी ऐसी कमाई करने से प्यारे रिश्ते नहीं बना करती