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तन्हाई का आलम, छाया है हर एक दिशा में, जहांँ जहां


तन्हाई का आलम,
छाया है हर एक दिशा में,
जहांँ जहांँ भी जाऊंँ मे,
अतीत की परछाई साथ चले मेरे।

बड़ा ही नाज़ था मुझे मेरे प्यार पर,
बड़ी फक्र से चलता था मे इश्क़ के गलियारों में, 
हुआ आज अंजाम यह मेरा के, 
रह गया मे अकेला इस तन्हाई के गलियारों में।

तन्हाई का आलम कुछ इस कदर, 
 छाया है आज मेरे सरजमीं पर के,
जहांँ जहांँ भी रखूंँ मे पैर, 
अतीत के खंडहर ही दिखे मुझे। 

ना मिलता है कहीं सुकून का पता, 
ना ही मिलता है मेरे दर्द का इलाज, 
बस मिलता है तो चारों तरफ, 
तन्हाई का आलम, तन्हाई का आलम।

-Nitesh Prajapati 


 ♥️ Challenge-972 #collabwithकोराकाग़ज़

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♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

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तन्हाई का आलम,
छाया है हर एक दिशा में,
जहांँ जहांँ भी जाऊंँ मे,
अतीत की परछाई साथ चले मेरे।

बड़ा ही नाज़ था मुझे मेरे प्यार पर,
बड़ी फक्र से चलता था मे इश्क़ के गलियारों में, 
हुआ आज अंजाम यह मेरा के, 
रह गया मे अकेला इस तन्हाई के गलियारों में।

तन्हाई का आलम कुछ इस कदर, 
 छाया है आज मेरे सरजमीं पर के,
जहांँ जहांँ भी रखूंँ मे पैर, 
अतीत के खंडहर ही दिखे मुझे। 

ना मिलता है कहीं सुकून का पता, 
ना ही मिलता है मेरे दर्द का इलाज, 
बस मिलता है तो चारों तरफ, 
तन्हाई का आलम, तन्हाई का आलम।

-Nitesh Prajapati 


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