क्रांति किसी कुचले इंसान का हिम्मतवर और सुंदर सपना है, भूखी दुनिया की आखिरी ख्वाहिश उसकी सारी लड़ाइयां, उसकी फरमाइश, रोटी से रोटी तक होती है। दलने के लिए तो वेश्याएँ भी दली जाती हैं, वो अपने निचले अंगों के पीछे अपना पेट उठाये चली जाती हैं, इस दुनिया को जो मैंने पाया है बुजुर्गों ने सोलह आने सच बताया है, असंतोष भूख से बड़ी बला होती है। भूखी आबादी क्रांति नहीं करती। कुचल देना अंध-व्यवस्थाओं की कला होती है फिर भी ये पिसे हुए, घिसे हुए लोग जब थोड़ा आदतन, थोड़ा मजबूरन सपने देखते हैं तो समझ लीजिए या तो उनके पेट भरे हैं या तो उनके सामने उनके चहेते मरे पड़े हैं। क्रांति