नादान ज़िंदगी उलझी रही तेरा-मेरा में तब-तक धीरे-से उमर सरक गई समय की गाड़ी में बैठ ज़िंदगी में की नादानियाँ अब क्यों पछ्ताए समय बीते अपने दिल की सुन न पाए अंत समय हाथ जाएंगे रीते मौज-मस्ती करने में बिता दिया वर्तमान सुनहरा अपने कल की फ़िक्र न कर भविष्य को किया अंधेरे तब तो की खूब नादानियाँ अब किस बात से घबराना यह राह जो तुमने चुनी उस राह पर अकेले चलते जाना अब न अपने काम आएंगे और न कोई साथी ज़िंदगी की तकलीफों के हम ही सवारी और सारथी _अनुराधा चौहान ✍️ #नादानियाँ