मैं लेके हाथ मे बैठा हूं फिर क़लम कागज़ ना जाने कोन है पर याद आ रहा है बहुत, के आज कल तो ये साया भी है मिरा दुश्मन तेरे बगैर ये मुझको डरा रहा है बहुत... समर मंगलोरी Samar shayri #sadshayribysamar