|| श्री हरि: ||
58 - बाल विनोद
'भद्र है।' किसी ने वृक्षमूल में चुपचाप बैठे दाऊ के नेत्र पीछे से आकर बंद कर लिए हैं। कौन होगा वह? यह युग - युग का परिचित स्पर्श - किंतु नेत्र बंद करने वाला प्रसन्न हो रहा होगा। उसके नेत्र खिल रहे होंगे। झटपट नाम बता देना कुछ अच्छी बात नहीं है। 'तोक, मेरे नेत्र छोड़ दे।' दाऊ ने दूसरा नाम लिया। वैसे तो तोक की नन्हीं हथेलियाँ उसके दीर्घ दृगों को ढक लेंगे, यह सोचना ही कठिन है।
'सुबल, श्रीदाम, ऋषभ, अर्जुन...... ' एक के बाद दूसरा नाम लिया जा रहा है। नेत्र बंद करने वाला बोलता नहीं, हंसता भी नहीं वह, पीठ से चिपका पीछे छिपा है।
'हौआ है!' अब दाऊ हंसते हुए बोला और नेत्रों पर धरे दोनों कर पकड़ लिए उसने। #Books