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विरह की अब, कहाँ गाथा,न अधरों की,कभी बातें। प्रीत

विरह की अब, कहाँ गाथा,न अधरों की,कभी बातें।
प्रीत ढूँढ रहा चप्पल,कटे नाभि रसपान में रातें।।
कहाँ अब प्रेम का दर्शन,विलोपित वह,गयी गीतें।
कभी नीरद,जहाँ उपमा,सहे व्याख्या,बड़े घाटे।।

©Bharat Bhushan pathak
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