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राष्ट्र भक्ति का दामन थाम। वह तय करता है क्या बोल

राष्ट्र भक्ति का दामन थाम। 
वह तय करता है क्या बोला जाये ।
जिसका रहा ना कोई इतिहास
वह कहता है इतिहास को बदला जाये।
सत्ता के नशे में चूर वह आत्ममुग्ध है ।
वह चाहता है दबाना अब ,
असहमतियों में उठे हर उस 
विरोधी आवाज़ को ।
वह चाहता है बोले हम भी 
उसके जैसी हीं भाषा ।
मगर यह उसकी भूल है...
शोला बनकर टूट पड़ेंगे,
थाती अपनी बचाने को। 
सिंचा जिस वसुधा को हमने, 
अपने खून-पसीने से ।
उस वसुधा का कर्ज अदा करेंगे ,
क्रांति की चिंगारी से ।
ना होने देंगे रत्ती भर भी धूमिल, 
गरिमा अपने मातृभूमि की ।
उसके हर चाहतों का देंगे,
मिटा वजूद ।
गफलत में ना रहो, 
लेंगे ज़वाब हर सवाल का... 
समस्या के समाधान का...
यह ताकत है संविधान का...
कमलेश कुमार गुप्ता

©Kamlesh Gupta Nirala
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