कहीं आने वाली रात्रि फिर काली न हो जाए, कहीं छाया देता वो पेड़ सिर्फ डाली न हो जाए, इन सोती आँखों में फिर जगने का इक डर है, कहीं हँसती हुई ज़िंदगी घड़ियाली न हो जाए। स्तब्ध हैं, निशब्द हैं। #सोचके #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi