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जीवन मेरा संग चला है,मेरी ही परछाईं में। सबकुछ पाक

जीवन मेरा संग चला है,मेरी ही परछाईं में।
सबकुछ पाकर,सबकुछ खोया, अपनी ही रुसवाई में।।
सुख के सागर पार किये, मृगतृष्णा की प्यास में।
तन्हा खुदको पाया मैने, अपनी ही तन्हाई में।।
हँस मिलकर सब बेठे साथी, संग ठिठोली करते थे।
आकाश तले से छूटा ऐसा, गिरा अपनी ही खाई में।।
खुशियों का एक महल बनाया, रेत के टीले
 पर चढ़कर।
बिखर गयीं सब आशायें, अपनी ही अंगड़ाई में ।।
तन्हा पड़ा में गिनता तारे, घनघोर अंधेरा छाया है।
ज्योति दिखा दे इस अमावस में,गुम हुआ परछाईं में।।

©Shubham Bhardwaj
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