शत् शत् प्रणाम!, जवानों की शहादत को, मातृभूमिभूमि पर मर मिटने की आदत को, भारत के नौनिहालों को, हर देशभक्त को, कई धर्मों के बीच उपजी समरसता को, विविधताओं के घट में समायी भारत की एकता को, शत् शत् प्रणाम!, शत् शत् प्रणाम!! Read Full Poem in Caption. शत् शत् प्रणाम!, शत् शत् प्रणाम!! लहराते गगनचुंबी तिरंगे को देशभक्तों के मचलते उमंगों को अल्लाहु अकबर को, हर-हर गङ्गे ! को, भारत-भू के पाँव पखारती हिंद की तरंगों को, शत् शत् प्रणाम!, शत् शत् प्रणाम!!