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"आँखें : मन की जु़बान होती हैं, तीर होती हैं -- क़

"आँखें : मन की जु़बान होती हैं,
तीर होती हैं -- क़मान होती हैं।
दुश्मनों के लिए किसी खंज़र से क़म नहीं,
दोस्तों की खा़तिर सलाम होती हैं।।
इन्हीं आँखों में समाए हैं तूफाँ के नजा़रे,
इन्हीं में बहती है सदा दर्द की नदी।
इन आँखों ने रची कई दास्तां 'अनुपम',
ये आँखें ! बे--जुबान होती हैं।।"
                          : अनुपम त्रिपाठी @मुक्त कंठ अम्बर !
"आँखें : मन की जु़बान होती हैं,
तीर होती हैं -- क़मान होती हैं।
दुश्मनों के लिए किसी खंज़र से क़म नहीं,
दोस्तों की खा़तिर सलाम होती हैं।।
इन्हीं आँखों में समाए हैं तूफाँ के नजा़रे,
इन्हीं में बहती है सदा दर्द की नदी।
इन आँखों ने रची कई दास्तां 'अनुपम',
ये आँखें ! बे--जुबान होती हैं।।"
                          : अनुपम त्रिपाठी @मुक्त कंठ अम्बर !