#OpenPoetry उठा रखा था मुझे चार लोगों ने पीछे- पीछे बहुत भीड़ आ रही थी, पर अफ़सोस था ये की उस वक़्त मेरी अर्थी जा रही थी। सभी के चेहरे पर उदासी थी, माँ भी गम में बेसुध पड़ी थी, टूट चुका था पिताजी का भी दिल क्योंकि आज उनकी आँखों के सामने बेटे की अर्थी सजी थी। एक तरफ बहिन रो रही थी क्योंकि मैं उसके राखी के बंधन को निभा न सका, वंही दूसरी तरफ रो रही थी वो जिसे मैं अपना हमसफ़र बना न सका। था जो मेरी ताक़त आज वो भाई भी कमजोर नज़र आ रहा था, क्योंकि उसका लाडला भाई आज उस से दूर जा रहा था। फूलों और लकड़ी से सजी उस सेज पर मेरे बेजान जिस्म को सुला दिया गया , और फिर मेरे अपनों की आँखों के सामने ही मुझे आग में जला दिया गया। -singhaniya #OpenPoetry meri arthi...