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रात भर बारिश हुई। जब रात भर बारिश होती है तब बारिश

रात भर बारिश हुई। जब रात भर बारिश होती है तब बारिश मेरी खिड़की से भीतर अा जाती है। बिना मुझसे पूछे कि क्या मैं अंदर अा सकती हूं? जैसे इसे मालूम हो कि मैं इसकी ही प्रतीक्षा में हूं। मैं किसकी प्रतीक्षा में हूं? तुम्हारी या बारिश की, या फ़िर ख़ुद की। कोई उत्तर नहीं मिलता। कभी कभी आदमी ख़ुद को ही कोई उत्तर नहीं दे पाता है।

शायद उत्तर देना ही नहीं चाहता हो - जैसे उत्तर मिल जाने पर वो भड़भड़ा कर गिर जाएगा। मिट्टी का शरीर कमज़ोर ही तो होता है। इतना कमज़ोर कि तुम्हारी याद का एक झोंका मुझे उड़ा दे। उड़ा कर पटक दे किसी रेगिस्तान में। मैं तुम्हारे प्रेम का प्यासा रास्ता भटक गया हूं। मिलों पैदल चलने के बाद थकान मेरी आंखों में उतर आई है। ओ मेरी मंज़िल, मुझे रास्ता दिखा दो। एक बूंद प्रेम बांध दो मेरी पीठ पर। मैं नदी बन जाऊंगा फ़िर मर जाऊंगा एक प्यासी मौत। कौन जानता है, नदी की मौत प्यास से हुई थी।

बारिश ने मन के साथ साथ बिस्तर भी गीला कर दिया।
"कितनी बार कहा है खिड़की बन्द करके सोया करो। लापरवाह कहीं के!" तुम्हारी ये बात बहुत याद आती है।

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#डायरी #डायरी
रात भर बारिश हुई। जब रात भर बारिश होती है तब बारिश मेरी खिड़की से भीतर अा जाती है। बिना मुझसे पूछे कि क्या मैं अंदर अा सकती हूं? जैसे इसे मालूम हो कि मैं इसकी ही प्रतीक्षा में हूं। मैं किसकी प्रतीक्षा में हूं? तुम्हारी या बारिश की, या फ़िर ख़ुद की। कोई उत्तर नहीं मिलता। कभी कभी आदमी ख़ुद को ही कोई उत्तर नहीं दे पाता है।

शायद उत्तर देना ही नहीं चाहता हो - जैसे उत्तर मिल जाने पर वो भड़भड़ा कर गिर जाएगा। मिट्टी का शरीर कमज़ोर ही तो होता है। इतना कमज़ोर कि तुम्हारी याद का एक झोंका मुझे उड़ा दे। उड़ा कर पटक दे किसी रेगिस्तान में। मैं तुम्हारे प्रेम का प्यासा रास्ता भटक गया हूं। मिलों पैदल चलने के बाद थकान मेरी आंखों में उतर आई है। ओ मेरी मंज़िल, मुझे रास्ता दिखा दो। एक बूंद प्रेम बांध दो मेरी पीठ पर। मैं नदी बन जाऊंगा फ़िर मर जाऊंगा एक प्यासी मौत। कौन जानता है, नदी की मौत प्यास से हुई थी।

बारिश ने मन के साथ साथ बिस्तर भी गीला कर दिया।
"कितनी बार कहा है खिड़की बन्द करके सोया करो। लापरवाह कहीं के!" तुम्हारी ये बात बहुत याद आती है।

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