#एक_गज़ल जाने कितने गांव के गांव इस शहर के हवाले हुए है इस शहर में जाने कैसे खुद को हम संभाले हुए है यहाँ न पानी साफ ,न हवा,न छत औ रोटियों का पता गांव के सब लड़के शहर के हसींन ख्वाब पाले हुए है घर से निकले है, कहीं पहुंचे नही अब तक सफर में है चले जा रहे है चर्चा ही नही पांव में कितने छाले हुए हैं किसी ने हुन बरसाए, हुस्न-औ-इश्क़ भी जीत लिया दस्ते-मेहनत काले करके हमें दो वक्त के निवाले हुए है लिखी तेरे फ़िराक़ में जमाना उन गज़लों को गाता है लाल आरिज़ है गवाह तेरे कूचे से कैसे निकाले हुए है ©दिनेश शर्मा 08.02.2019, 00:12 AM #आरिज़ #रोटियां #शहर #गांव