|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9
||श्री हरिः||
6 - भगवत्प्राप्ति
'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो महान हानि हुई।'
प्रवचन समाप्त हुआ। लोगों ने हाथ जोड़े, सिर झुकाया और एक-एक करके जाने लगे। सबको अपने-अपने काम हैं और वे आवश्यक हैं। यही क्या कम है जो वे प्रतिदिन एक घंटे भगवच्चर्चा भी सुनने आ बैठते हैं। परंतु अवधेश अभी युवक था, भावुक था। उसे पता नहीं था कि कथा पल्लाझाड़ भी सुनी जाती है। वह प्रवचन में आज आया था और उसका हृदय एक ही दिन के प्रवचन ने झकझोर दिया था।