जब पहले घर पर पाँव नहीं ठहरे तो हुड़दंगियों में शामिल हो जाते आज सब है मुनासिब लेकिन न हुड़दंग है न ही है कोई टोली और पाँव तले घर नहीं एक मकान ही बचा है अब सोचता नही ज्यादा भारी हो चली हैं आँखें ये कलम हैं यहीं और शब्द भी मन की स्याही सूख चुकी है वादा करता हूँ जैसे हर रोज़ वैसे आज भी यही कहता हूँ कल फिर आउंगा कुछ कहने बस भूलना मत तू ए मन ! तेरी ख़ामोशी के सहारे ही ज़िन्दगी कट रही है मेरी (Read from Top to Bottom and Bottom to Top #ReverseVerses) I write a lot on the pangs of being away from home because in the long run it does it hit me. This piece is unique because its REVERSIBLE and still makes sense and conveys the same idea. I love how everything falls in place to the end and you get what we need to portray. I invite others to try #ReverseVerses #ReversiblePoetry #CalmKaziWrites #YQBaba #Works #Home #Away