दिल में रहते ख़बर नहीं होता, ये असर बेअसर नहीं होता, आईना साफ रखना पड़ता है, प्यार के बिन गुजर नहीं होता, इश्क झलके न अगर आँखों से, मुहब्बत दर-ब-दर नहीं होता, झूठ और सच की तरफदारी में, फ़ैसला मुख़्तसर नहीं होता, स्याह रात बीत जाने दो, बिना सूरज सहर नहीं होता, ख़ामुशी इख़्तियार करली है, तब से घर में समर नहीं होता, मिलते-जुलते हैं लोग मतलब से, हम-नवा हमसफ़र नहीं होता, न दे जो धूप में छाया 'गुंजन', पेड़ सूखा शज़र नहीं होता, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #समर नहीं होता#