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उम्र बीता बड़ी तेजी से, आयी जवानी की , फिर देहलीज

उम्र बीता बड़ी तेजी से, आयी 
जवानी की , फिर देहलीज
दिखने लगा, लाचारी का आलम, 
आयी लेकर , कुछ तहजीब

भार पडा फिर कंधों पर , जिम्मेदारी
जो निभानी थी, पेट भरने के लिए
फिर, कुछ दौलत जो कमानी थी

कोस रहा मन जवानी को,बचपन
तु क्यों गुजरा, न फिक्र न चिंता थी
बचपन  तो , खेलों में  गुजरा, 

बीत जाता था हर पल, अठखेलियों में, 
साँझ डले ही ,घर को आना था, माँ की
हाथों की रोटी खाकर,सीधे सोने जाना था, 

अब न रहा वो दिन बचपन का, देहलीज
जवानी की आई है, माँ बापों ने भी अब
हमसे ,थोड़ी उम्मीद लगायी है. 
,
उम्र बीता बड़ी तेजी से....

©पथिक..
  #jawni

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