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दिल के उलझें बिखरें तारों को सुलझाऊँ कैसे, नज़दीक

दिल के उलझें बिखरें तारों को  सुलझाऊँ  कैसे,
नज़दीकियाँ  हमारें  दरमियाँ फ़िर  बढ़ाऊँ कैसे।

बहती नदी सा वक़्त  अब इम्तिहानों  में गुज़रता है,
बिन इम्तिहाँ के नाव  दिल की  पार लगाऊँ कैसे। 

सुना है! क़दम बस  महफिल में पड़ते  है  उनके,
इक  पल में  अपनी तरबियत  भूल  जाऊँ कैसे।

तन्हाई  से  रुसवाईयाँ  भी  बहुत  है  मुझें  मग़र,
सर-ए-बज़्मो  दिलचस्पी  बढाऊँ तो  बढाऊँ कैसे।

अजी! मोबाइल  के ज़मानें  में कौन  मांगता है पता,
अब ख़त लिखकर फिर हाल-ए-दिल बताऊँ  कैसे।

उसके हुस्न की जादूगरी से सिल जाते है लब मेरे,
'अंजान'अपनी कहानी मंज़िल तक पहुँचाऊँ कैसे। बहती नदी सा वक़्त(ग़ज़ल)

#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#जन्मदिनकोराकाग़ज़ 
#kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता 
#kkबहतीनदीसावक़्त 
#yqbaba
दिल के उलझें बिखरें तारों को  सुलझाऊँ  कैसे,
नज़दीकियाँ  हमारें  दरमियाँ फ़िर  बढ़ाऊँ कैसे।

बहती नदी सा वक़्त  अब इम्तिहानों  में गुज़रता है,
बिन इम्तिहाँ के नाव  दिल की  पार लगाऊँ कैसे। 

सुना है! क़दम बस  महफिल में पड़ते  है  उनके,
इक  पल में  अपनी तरबियत  भूल  जाऊँ कैसे।

तन्हाई  से  रुसवाईयाँ  भी  बहुत  है  मुझें  मग़र,
सर-ए-बज़्मो  दिलचस्पी  बढाऊँ तो  बढाऊँ कैसे।

अजी! मोबाइल  के ज़मानें  में कौन  मांगता है पता,
अब ख़त लिखकर फिर हाल-ए-दिल बताऊँ  कैसे।

उसके हुस्न की जादूगरी से सिल जाते है लब मेरे,
'अंजान'अपनी कहानी मंज़िल तक पहुँचाऊँ कैसे। बहती नदी सा वक़्त(ग़ज़ल)

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