बिल्कुल महफूज़ थी मेरी जहाँ ए जीस्त का आशियाना मिले जब से उस अजनबी से उजड़ गया वो आशियाना, शिकायत भी करे तो किस से मिलकर भी मितमुइन थे, जाना जब से उनकी सच्चाई की नजर आया वो आईना, एक बार तो हो गया था दिल को मोहब्बत पर ऐतबार, पर अब तो टूटा विश्वास न कभी किसी से दिल लगाना, किसी गैर के साये में ये भी दिल कहाँ आबाद होता है, यह वास्तविक सच है दोस्त हर किसी को यह है बताना, चलिये ज़नाब अपनी व्यथा के पीड़ गान को बंद करते है, बुरा लगे माफ़ करना पर मेरी बातों को दिल से न लगाना। Sublime Inscriptions brings you Weekly challenge 🖤 WCSI008 🖤 #SI_दिल_आबाद_कहाँ [Is my heart affluent] Collab open for all. सहभागिता सबके लिए खुली है। Maintain aesthetics. शब्दों की मर्यादा का ध्यान अवश्य रखें ।