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एक दीवाना था। (पार्ट 3) “बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?

एक दीवाना था।
(पार्ट 3) “बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?” रमा बहन ने पूछा।
“ठीक से खाना भी नहीं खाया तुमने!”
अक्षत क्या बोलता? दिल पर चोट लगी थी पर किसी को बता नहीं सकता था। बस इतना कह दिया की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी।
घर पहुँचते ही वह अपने कमरे में चला गया। अकेले में आँखों से आँसू निकल आये। उसने बत्ती बुज़ा दी। नींद तो आनेवाली नहीं थी बस अँधेरे में तनूजा के बारे में सोचता रहा।
“भैया! उठ भी जाओ अब। काफी देर हो चुकी है। कितना सोओगे?” मीना ने दरवाज़ा खटखटाया।
अक्षत ने दरवाज़ा नहीं खोला। मन नहीं था किसी से बात करने का।
एक दीवाना था।
(पार्ट 3) “बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?” रमा बहन ने पूछा।
“ठीक से खाना भी नहीं खाया तुमने!”
अक्षत क्या बोलता? दिल पर चोट लगी थी पर किसी को बता नहीं सकता था। बस इतना कह दिया की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी।
घर पहुँचते ही वह अपने कमरे में चला गया। अकेले में आँखों से आँसू निकल आये। उसने बत्ती बुज़ा दी। नींद तो आनेवाली नहीं थी बस अँधेरे में तनूजा के बारे में सोचता रहा।
“भैया! उठ भी जाओ अब। काफी देर हो चुकी है। कितना सोओगे?” मीना ने दरवाज़ा खटखटाया।
अक्षत ने दरवाज़ा नहीं खोला। मन नहीं था किसी से बात करने का।