ख़लिश है दिल में आया नहीं मेरा नाम लेकर बुलाया नहीं हैं बेचैन ऑंखें जलता है दिल मैं उसके दिल में समाया नहीं तड़पती हैं रातें बेक़रार हैं दिन महीनों से सुरत दिखाया नहीं घुटन से जीना मुहाल है अब मगर मैंने आंसू बहाया नहीं दिल में अब है एक ख्वाहिश बनूँ महबूब जिसको भाया नहीं ©Qamar Abbas #Darknightsoflife रविन्द्र 'गुल' ek shayar