कृष्ण एक स्वास्थ्य का अभूतपूर्व स्वरूप (सिद्धांत रूप) देश को दे गए- “गाय का, बिलौवणे का,मक्खन खाओ, भले ही चुराकर खाना पड़े।” आज विज्ञान ने उसे भी विषाक्त कर दिया। अन्न को विष बना ड़ाला विदेशी खाद से,कीटनाशक से, उन्नत बीजों से। विज्ञान पैदा नहीं कर पाया शिव, नीलकण्ठ। विष्णु के क्षीर सागर का अमृत भी हो गया विष। दूध को माया ने जहर बना दिया। क्या इस क्षीर को पीकर किसी बालक की रोग निरोधक क्षमता सुरक्षित रह पाएगी? बालक तो लगता है महामारियों के मध्य ही जीता जाएगा। नकली दूध पीएगा, कच्चा कीटनाशक युक्त डेयरी का दूध पीएगा, विदेशी गायों का घी-मक्खन खाकर कृष्ण तो नहीं बनेगा। बाल सखाओं के साथ मौत को कौन चुराएगा।