ग़ज़ल देख लो क्या हुआ देखते-देखते, रोग कैसा बढ़ा देखते-देखते। खौफ़ में सब अभी जी रहे हैं यहाँ, चैन सबका लुटा देखते -देखते। दर्द सबको यहाँ चीन ने जो दिया, विश्व पूरा जला देखते-देखते। कैद घर में हुए क्या ख़ता थी भला दण्ड सबको मिला देखते-देखते। मरकज़ों से बढ़ा रोकना है कठिन बढ गया दायरा देखते-देखते। थूकते हैं उन्हीं पे करे जो दवा जग बना है बुरा देखते-देखते। हाल अब क्या सुनाए *प्रियम* आपको, दर्द सबको हुआ देखते-देखते। ©पंकज प्रियम रोग