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मिलने गया था उससे पर मिल न सका, क्या रही मेरी मजब

मिलने गया था उससे पर मिल न सका, 
क्या रही मेरी मजबूरी कि अपना दुख उसे बता न सका 
उसे भी हुआ महसूस कि हमे  उसकी जरूरत है
मगर क्या रही उसकी मजबूरी कि वो आ न सका 
 फिर मैं उससे मिलने के गम के सागर मे डूबता ही चला गया,
और लोग पूछते रहे क्या बात है कुछ तो बताओ
 मगर क्या रही मेरी मजबूरी कि मैं बता न सका
 फिर इंतजार की घड़ियाँ रुकी नही वक्त भी थम न सका, 
वो आता हमसे मिलने वो पल भी आ न सका 
क्या रही मेरी मजबूरी कि रोना चाहा मगर रो न सका
 फिर एक रोज वो आई मिलने ख्वाब में उसको देखा मैने पर कुछ कह न सका, 
किसको कहूँ बुरा, किस्मत को, या खुद को, हो गयी सुबह, खुल गयी आँख, क्या करू वो ख्वाब मे भी मिल न सका

©Harsh dixit
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