मैं बेढंगा सा रैप गढ़ा, तुम शीतल-संगम भजनों का। मैं मयखानों में बजता हूँ, तुम पावन सरगम स्वजनों का।। प्रस्तुत है रचना; "प्रेमातिरेक" भाग - ३ भाग - १ व भाग - २, प्रोफाइल में दिया गया है,, पढ़ने के इच्छुक मुझे बता दें तो मैं tag कर दूंगा...☺☺ पूर्ण रचना अधोलिखित भाग में पढ़ें। 👇👇👇👇👇👇👇👇 "प्रेमातिरेक" भाग - ३ मैं मई-जून की गर्मी हूँ, तुम ठंडा मौसम सावन का। मैं पतझड़ जैसा निर्झर हूँ, तुम माह बसन्ती छावन का।।