मेरे शाम सरल नहीं हैं तुम्हारा पथ, मेरी पगडंडियो पर भी चल कर देखना कठिन हैं, तुम पीपल के छाव मे जब बंशी बजाते हो मैं धूप वर्षा मैं नंगे कदम आ जाती हूँ बिना सोचे बिना समझे सुद्बुध् हारे तुम्हे निहारने आजाती हूँ, तुम भी बहुत सहते हो जग जब शब्दो मे तुम्हे हमे लिखता हैं मेरा इंतजार और तुम्हारा मोह तोड़ जाने का वर्णन करता हैं, जब मैं भी यही कह दूँ समझती हू मेरे प्राण तुम्हारा हिर्दय और पीर से भरता हैं कृष्णा से द्वारीकधीस बनने की और हो तुम अब बंशी के साथ साथ तुम्हारे कर मे सुदर्शन चक्र भी देखना होगा मुझे देखा है तुम्हे बस मुझे पुकारते बेफिक्री मे गौ को चराते तो बस इसलिए समझ नहीं पाती, की तुम्हारा राज पाट और तुम्हारी जिम्मेवारी क्युंकि मैंने सदा नटखट कान्हा के बंसी के बुलाने पे सदा आई हूँ, अब भी तुम्हे कृष्णा मिलने पे द्वारीकधीस् बोल दू मैं समझती हूँ तुम्हें पर सायद खुद को नहीं समझा पाती हूँ खैर ये जीवन निरंतर बढ़ता रहेगा हम रुक जाए या चलते रहे इसे फर्क नहीं ये अपनी गति से चलेगा तो रुक के कुछ चंद छन तुम्हारे संग बिताने के लोभ मे तुम्हारे हिर्दय से जा रही हूँ दोष मेरा यह की खुद को नहीं समझा पा रही हूँ। मैं राधा नही बन सकी उनके जैसा धर्य नहीं मुझ मे पर कुछ तो है मेरे भी मन मे आपके लिए जो था है और सदा रहेगा प्रेम पर नहीं खड़ी उतर मैं पर इसे जो भी समझो हिर्दय पर आपका चित्र सदा रहेगा --सलोनी कुमारी ©khubsurat #poetryunplugged #khubsuratsaloni #Nojoto #steps Priya dubey Sudha Tripathi