इन्द्रधनुष सदृश सतरंगी नहीं परञ्च रंग जाते मनोभाव मनोहारी ! परिवेश की आभा से अभिसिंचित। सहजता से सोखकर मृदुल मोहक समरस अवशोषित रूप रस गंध एकात्म होकर भावों से नूतन उद्गम के द्वार खोलकर बहा देती अजस्र धारा माधुर्य अभिशप्त हरसिंगार के शब्द फूल झड़ झड़ कर बिखरते और कुम्हला जाते। संवरण तात्कालिक क्षणिक बोधमात्र..... विलीन हो जाता अस्तित्व दिशा दिगंत की अनंत गहराइयों में.. व्याप्त रहती भीनी सुगंध स्मृति अवशेष.... प्रीति #अनकही #मनोभाव #परिवेश #रचना #yqhindi#yqhindiquotes