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बेटे डोली में विदा नहीं होते, ये और बात है.... मगर

बेटे डोली में विदा नहीं होते,
ये और बात है.... मगर,

उनके नाम का ,जॉइनिंग लेटर
आँगन छूटने का ,पैगाम लाता है।

जाने की तारीखों के ,नजदीक आते आते,
मन बेटे का,चुपचाप रोता है।

अपने कमरे की ,दीवारें देख देख 
घर की,आखिरी रात ,सो नही पाता है।

होश संभालते संभालते, घर की जिम्मेदारियाँ
संभालने लगता है।

विदाई की सोच में,बैचेनियों का समंदर 
हिलोरे मारता है।

शहर, गलियाँ,घर 
छूटने का दर्द समेटे, सूटकेस मे किताबें और 
कपड़े सहेजता है।

जिस आँगन मे पला-बढ़ा;आज उसके छूटने पर,
सीना चाक-चाक फटता है।

अपनी बाइक, बैट,कमरे के अजीज पोस्टर छोड़,
आँसू छिपाता 
मुस्कुराता निकलता है।

©पूर्वार्थ
  #बेटे 
#विदाई