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आत्महत्या कभी नहीं होती आत्महत्या। वो है एक सामाजि

आत्महत्या
कभी नहीं होती आत्महत्या।
वो है एक सामाजिक दवाब। नैतिक आदर्शों के पतन की पराकाष्ठा।
एक छद्म सामाजिक षड्यंत्र, जो रचा जाता है, 
अपनों के ही द्वारा, हर पल,हर स्थिति में, 
जो धकेलता है उसे एक क्रूर मानसिकता की ओर।
इसे कह सकता हूँ मैं, एक सामूहिक हत्या,
जिसमें गुनाहगार है अदृश्य।उसका चेहरा नहीं है एक,
उसमें शामिल हैं,बहुत से गड्ड-मड्ड चेहरे।
हर एक अपने का व्यवहार,वार्ता,व्यंग्य,हँसीऔर दिखावटी सहारा भी,
काम करते हैं,एक धारदार हथियार का।
मजबूर करते हैं उसे,वे सामाजिक आदर्श,
जो बता दिए गए हैं उसे महत्वपूर्ण,उसके जीवन से भी ज्यादा।
अपनों की अपेक्षाएँ,अपनी क्षमताएँ,
रुचियों का दमन,सामाजिक शोषण सब,
कारगर हथियार हैं,इस सामूहिक निकृष्टता के।
बड़ी आसानी से इसेख़ुदकुशी कहकरबच निकलता है हत्यारों का समूह।
क्योंकि मरने वालानहीं दे सकता अपने निर्दोष होने की सफाई।
नहीं रख सकता कोई सबूत।
वो देख लेता है सबको,अपनी नज़रों से गिरता हुआ।
वो नहीं पाता स्वयं को इन परिस्थितियों के लायक।
अति संवेदनशील होता है वो।जो दुखी होता है हर निकृष्टता से।
बार-बार विदीर्ण होता है उसका हृदय।
वो नहीं समझता,इस दुनियां को,इंसानों के रहने लायक।
और हो जाता है शिकार,एक सुनियोजित षड्यंत्र का।
अपराधी वहीं खुलेआम घूमते रहते हैं,संवेदना जताते हुए।
और स्वयं के क्रूर कर्मों के परिणाम को आत्महत्या बताते हुए।।
😭परेशान😭

©Jitendra Singh #suiside#atmhatya#khudkushi
आत्महत्या
कभी नहीं होती आत्महत्या।
वो है एक सामाजिक दवाब। नैतिक आदर्शों के पतन की पराकाष्ठा।
एक छद्म सामाजिक षड्यंत्र, जो रचा जाता है, 
अपनों के ही द्वारा, हर पल,हर स्थिति में, 
जो धकेलता है उसे एक क्रूर मानसिकता की ओर।
इसे कह सकता हूँ मैं, एक सामूहिक हत्या,
जिसमें गुनाहगार है अदृश्य।उसका चेहरा नहीं है एक,
उसमें शामिल हैं,बहुत से गड्ड-मड्ड चेहरे।
हर एक अपने का व्यवहार,वार्ता,व्यंग्य,हँसीऔर दिखावटी सहारा भी,
काम करते हैं,एक धारदार हथियार का।
मजबूर करते हैं उसे,वे सामाजिक आदर्श,
जो बता दिए गए हैं उसे महत्वपूर्ण,उसके जीवन से भी ज्यादा।
अपनों की अपेक्षाएँ,अपनी क्षमताएँ,
रुचियों का दमन,सामाजिक शोषण सब,
कारगर हथियार हैं,इस सामूहिक निकृष्टता के।
बड़ी आसानी से इसेख़ुदकुशी कहकरबच निकलता है हत्यारों का समूह।
क्योंकि मरने वालानहीं दे सकता अपने निर्दोष होने की सफाई।
नहीं रख सकता कोई सबूत।
वो देख लेता है सबको,अपनी नज़रों से गिरता हुआ।
वो नहीं पाता स्वयं को इन परिस्थितियों के लायक।
अति संवेदनशील होता है वो।जो दुखी होता है हर निकृष्टता से।
बार-बार विदीर्ण होता है उसका हृदय।
वो नहीं समझता,इस दुनियां को,इंसानों के रहने लायक।
और हो जाता है शिकार,एक सुनियोजित षड्यंत्र का।
अपराधी वहीं खुलेआम घूमते रहते हैं,संवेदना जताते हुए।
और स्वयं के क्रूर कर्मों के परिणाम को आत्महत्या बताते हुए।।
😭परेशान😭

©Jitendra Singh #suiside#atmhatya#khudkushi